Monday 18 September 2017

न रखना अब वास्ता

समझकर भी न समझें उसे क्या वाकिफ़ कराना फ़र्ज़ से,
जाओ किया आज़ाद अपने रिश्ते के हर कर्ज़ से
बहुत रोए बहुत तड़पे बहुत की कोशिशें मनाने की
न रखना अब वास्ता कोई मेरे दर्द से या मर्ज़ से,...

प्रीति सुराना

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-09-2017) को सुबह से ही मगर घरपर, बड़ी सी भीड़ है घेरी-चर्चामंच 2732 पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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