Tuesday 19 September 2017

कुंठा

आंसू बन अपनी पीड़ा को ढलने दो
मन ही मन कोई कुंठा मत पलने दो

घाव लगा कोई तो थोड़ा सा रो लो
अपने आंसू से ही घावों को धो लो
घावों को नासूर बना मत गलने दो
मन ही मन कोई कुंठा मत पलने दो
आंसू बन,..

जलते दुखते टीस भरे मन को थामो
अपना और पराया खुद ही पहचानो
अपना ही मन अपनों को मत छलने दो
मन ही मन कोई कुंठा मत पलने दो
आंसू बन,..

आघात अगर मन पर कोई दे जाये
सुख का कोई पल भी रास नही आये
शांत रखो मन को यूँ ही मत जलने दो
मन ही मन कोई कुंठा मत पलने दो
आंसू बन,..

कौन कभी अपनी नियति बदल पाया
जीवन भर कठपुतली सा नाच नचाया
डोर न टूटे काल बुरा ये टलने दो
मन ही मन कोई कुंठा मत पलने दो
आंसू बन,..

धीरज से लो काम समय ये बदलेगा
हो सकता है थोड़ा और समय लेगा
खेल समय का जैसा भी है चलने दो
मन ही मन कोई कुंठा मत पलने दो
आंसू बन,..

आंसू बन अपनी पीड़ा को ढलने दो
मन ही मन कोई कुंठा मत पलने दो

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आह

    क्या सटीक शब्दो मे पिरोया है इसे
    मजा आ गया

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