Saturday 5 August 2017

साधक की आत्मनिष्ठा

         सुबह सुबह मोबाइल घंटी बजी। सामने से आवाज़ आई,
       "हेलो! सुकृति मैम बात कर रही हैं?"
       "जी। कहिये।"
       "मैम सोशल साइट अर आपके बनाए कार्टून्स और शब्दचित्र देखे। बहुत ही बेहतरीन कलाकार हैं आप। क्या आप हमारी पार्टी के लिए काम करेंगी??"
        सुनकर सुकृति थोड़ी उत्साहित हो गई। और चहक कर पूछा,- मुझे क्या करना होगा।
        "आपको हमारी विरोधी पार्टी के नेताओं के कार्टून बनाकर उसपर हमारे निर्देशानुसार व्यंग्यात्मक टिप्पणियां लिखनी होगी जिससे विरोधी पार्टी की छवि खराब हो। आपको हर चित्र के लिए अच्छी राशि दी जाएगी। और आपका नाम भी पार्टी से जुड़ जाएगा।"
        कुछ पलों के लिए सुकृति स्तब्ध हो गई। सामाजिक कुरीतियों और बाल शिक्षा के लिए सालों से चल रही साधना छोड़कर पैसे के लिए दिशा बदलने की सोचकर ही मन धिक्कारने लगा।
        खुद को थोड़ा संभाला और सधे हुए शब्दों में कहा, "महोदय मैं नैतिक शिक्षा के चित्र अंकित करती हूं इस तरह राजनीति के लिए मैं अपनी कलम नहीं बेचूंगी, मुझे क्षमा करें ये एक *साधक की आत्मनिष्ठा* का प्रश्न है।"
         यह कहकर उसने लाइन काट दी और आज अपनी तूलिका पर नए चित्र के लिए मिली इस नई पृष्टभूमि पर काम शुरू कर दिया।

प्रीति सुराना

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