Saturday 5 August 2017

पथ की अशेषता

       सुधा के आंगन में कुछ फूलों के पौधे लगे हैं बहुत प्यार है उसे फूलों से। शशांक के जाने के बाद उसने यादों को फूलों के रंगों में जीना शुरू किया। बहुत सारे रंग जिंदगी के, यादों के, फूलों के।
   जीवनयापन के लिए शशांक की जगह अनुकंपा नियुक्ति में मिली शिक्षा विभाग की नौकरी स्वीकार कर ली। निःसंतान दंपत्ति में से कोई एक असमय चला जाए तो ,.. ? सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते है हैं।
कोई प्रेम निभाना सुधा से सीखे। काम पर जाने से पहले और लौटकर शाम गहराने तक शशांक के पसंदीदा फूलों को बच्चों की तरह पालती।
       एक दिन सुबह सुबह माली सतरंगी फूलों वाला नया पौधा दे गया। समय के साथ वो बड़ा हुआ एक बहुत सुंदर सतरंगी फूल खिला। उसी इतवार छोटी बहन बच्चों के साथ घर आई। जाने कब बच्चों ने वो सतरंगी फूल तोड़ लिया। मेहमानों के जाने के बाद अगली सुबह अपनी दिनचर्या यथावत शुरू की । बगीचे में उस फूल को न पाकर विचलित हो गई।
        बहुत तड़पी बहुत रोई अगले कुछ दिन उसने उस एक फूल के लिए मातम में गुज़र दिए। 4-5 दिन बाद अचानक उसकी नजर पड़ी, जिस जगह से फूल तोड़ा गया था ठीक वहीं से कुछ छोटी छोटी संरचनाएं नज़र आ रही थी।
         अब सुधा ने एक नई ऊर्जा महसूस की। रोज पहले से ज्यादा उस पौधे का ध्यान रखने लगी अगले ही हफ्ते साथ छोटी छोटी शाखाएं पनपी और सात नए सतरंगी फूल।
      सुधा को लगा मानो उसकी सारी खुशियां कई गुना होकर लौट आई हो। साथ ही उसने अपने भीतर गज़ब का आत्मविश्वास महसूस किया। इन नवपल्लवित फूलों ने उसे *पथ की अशेषता* का आभास करवाया।
    
प्रीति सुराना

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