Wednesday 2 August 2017

नीरव व्यथा


          सुनो मिताली! "तुमने मेरा बहुत साथ दिया मेरा। तुम्हारी दिखाई राह से आज मैं जिस मुकाम पर पहुंची हूँ वो सबको बता नही सकती। तुम समझ रही हो न बड़ी सोसायटी में बड़े लोगों की राजनीति बहुत चलती है। उस जगह खुद को स्थापित करना हो तो उनकी हां में हां मिलना ही पड़ता है। पर तुम आना जरूर तुम्हारा सम्मान इस तरह करवाउंगी कि तुमने सोचा भी नही होगा। बड़े बड़े लोगों से तुम्हारा परिचय होगा तो तुम्हारी पहचान भी बढ़ेगी।"
        ये सब सुनकर हतप्रभ मिताली ने अपने आंसू पोंछते हुए फोन रख दिया। नियत तिथि का रिजर्वेशन करवाकर नियत समय पर स्वास्थ्य को दरकिनार कर शालिनी के आयोजन में पहुंची। वादे के अनुसार समुचित सम्मान पाया पर बहन का स्नेह खोकर।
          हृदय छिन्नभिन्न हो गया जब किसी से शालिनी को ये कहते सुना कि "ये उन्नति सिर्फ और सिर्फ मेरे हुनर का कमाल है और इस सफलता का पूरा श्रेय  अपनी संस्था का नाम लेकर मिताली खुद लेना चाहती थी इसलिए आज से उससे सारे संबंध खत्म कर लिए।"
          इसे उन्नति कहूँ या सफलता या फिर मेरे लिए जीवन की एक नई सीख? यही नीरव व्यथा मन में लिए मिताली घर लौट आई ।
          उसने ऐसी ठोकरों से डरना सीखा ही नही बल्कि ये सबक उसकी उन्नति का महत्वपूर्ण पाठ बनेगा यह सोचकर आंसू पोंछ लिए।
खिड़की खोली तो देखा बादल छंट गए और सूरज मुस्कुरा रहा था।

प्रीति सुराना

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