मैं बहुत छोटी हूँ
शायद इसलिये
छोटी छोटी खुशियों में
बहुत खुश हो जाती हूँ,..
और छोटे छोटे दुखों में
बहुत दुखी हो जाती हूँ,..
ऐसा नहीं है कि
मैं बड़ी नही होना चाहती
*सवाल* ये है कि
मैं बड़ी होउंगी
तो क्या खुशियाँ भी बड़ी होंगी,..?
अगर हाँ,
तब तो बहुत अच्छा होगा
पर इस डर का क्या करूँ
कि तब दुख भी
बड़े-बड़े होंगे,..
ना ना!!
मुझे नही होना बड़ा
मैं ठीक हूं
अपनी छोटी सी दुनिया
अपनी छोटी सी पहचान
अपने छोटे छोटे सुखों में,..
बहुत आसानी से
पार कर लेती हूं
अपनों का हाथ थामकर
छोटे छोटे पड़ाव सुख-दुख के,
और यही मेरी सबसे बड़ी खुशी है,...
हाँ!
मैं सचमुच खुश हूं,...
प्रीति सुराना
सुन्दर रचना
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