Thursday 20 July 2017

*भाव पल्लवन:- हर पल यहां जी भर जियो,... कल हो न हो।*

     *आज के गद्य विशेषांक में* सिर्फ *मन की बात*, क्योंकि *कल मैं रहूं न रहूं,...*
   हाँ! मैं जीती हूँ जिंदगी ऐसे जैसे जो है आज है अभी है जाने कल हो न हो। और ये सोच और विचारों का ये सिलसिला उस दिन शुरू हुआ जिस दिन गहरी बेहोशी के बाद अपने बच्चों का उदास चेहरा सामने देखा। उस पल से अपनी शारीरिक पीड़ाओं और अक्षमताओं को भूलकर सिर्फ ये याद रखा कि *जिंदगी दोबारा नही मिलेगी इसे आज ही जीना है।*
      कई लोगों को देखा है किसी बीमारी से उबर भी गए तो उसके सदमे से नही उबर पाते, कई लोगों की सोच ये भी है की जिंदा हो तो ऐश कर लो, बिना किसी लक्ष्य बिना किसी उद्देश्य तन मन और धन के सुख ही सब कुछ हैं। पर नही,... मैंने अपनी हर विकट परिस्थिति के बाद खुद को और अधिक सक्रिय किया ऐसे कार्यों के लिए जिसमें सिर्फ मेरा सुख नही था, *न तन न धन जो किया समर्पण के भाव से सिर्फ मन की संतुष्टि को ध्यान में रखते हुए।*

*मेरी बस इतनी सी चाहत है*
*कुछ ऐसा करुं मरने से पहले*
*जो लोग आज हंसते हैं मुझ पर*
*वो भी रोएं मेरी अर्थी पर,...*

     पर ये सोच भी हमेशा चलती रहती है मन में कि कुछ भी ऐसा न करुं कि मेरे बाद किसी का नुकसान हो या किसी का कोई भी काम रुक जाए। हर रोज एक रूपरेखा सिर्फ आज के कामों की जो अधूरा रहे तो इतना ही कि कोई और पूरा कर सके। कोई एकछत्र राज वाली कार्यप्रणाली नही सबको जो आज सिर्फ मेरा दिखता है कल मेरे न होने पर भी सुचारू रूप से जारी रहेगा। घर-परिवार, व्यापार-व्यवहार, सपने-लक्ष्य, सब सतत रहेंगे मेरे बाद भी क्योंकि *खुले पन्नों की किताब सा जीवन अंतिम पृष्ठ तक पढ़ा जा सकेगा ।*
       बात सिर्फ इतनी सी कि संस्कार और व्यवहार ऐसा बनाने की कोशिश कर रही हूँ कि मेरे बाद भी मुझे याद रखा जाए पूरी दुनिया में न सहीं मेरे अपनों की दुनिया में जहाँ कुछ को अच्छी कुछ को बुरी लगती हूँ अपनी अपनी अपेक्षाओं के हिसाब से। *इसलिए किसी के दिल मे किसी के दिमाग मे किसी की नज़र में किसी के नज़रिये में जीवित रहूंगी ये उम्मीद करती हूं।*
       साथ ही अपने कार्य अपनी कार्यशैली और अपना कार्यक्षेत्र इस तरह संचालित किया कि जो भी है वो मेरे बाद कोई और संभाल सके। घर में पति और बच्चे , परिवार में छोटे और बड़े, व्यापार में देनदार और लेनदार, व्यवहार में अपने और पराए, सपनों में सामर्थ्य और प्रयास, लक्ष्य में सिर्फ आज और आज में किसी का अहित न करने की भावना इन सब में सामंजस्य बनाए रखते हुए जब तक हूँ तब तक इसी सोच और सामंजस्य को कायम रखते हुए मन की संतुष्टि के लिए पूर्णतः समर्पित होकर *वही कार्य करना जिससे किसी को हानि न पहुँचे ।*
       इस बात पर अटूट विश्वास रखती हूं कि *एक पल का भरोसा नहीं जो है आज है अभी है* इसलिए मेरा किसी पर प्यार या विश्वास, किसी से गुस्सा या लड़ाई और तो और किसी सपनें को पूरा करने के लिए पहला कदम, गलती की क्षमा मांगने की पहल, किसी की प्रशंसा किसी की गलती पर प्रतिक्रिया सब कुछ आज और अभी,.... *हर पल यहां जी भर जियो,... कल हो न हो।*

*प्रीति सुराना*

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