Tuesday 18 July 2017

अस्तित्व

        बिंदु चुपचाप अकेली उदास बैठी थी और आकृति कुछ दूर खड़ी उसे उपेक्षित और व्यंग्यात्मक नज़रों से देख रही थी। अचानक बिंदु नज़र आकृति से मिली और उसे गुस्सा आ गया।
           बिंदु ने इशारे से अपनी परम मित्र को कुछ कहा जो आकृति में शामिल थी और उसने अपने बाजू वाली और उसकी बाजू वाली ने अपने बाजू ये बात कानों ही कानों में कह डाली। सब एक दूसरे से इशारों में ही बात करती रहीं और आकृति बिल्कुल बेखबर रही।
     कुछ ही देर में इशारों और कानाफूसी का नतीजा ये हुआ कि कई गुट बन गए सब अपनी जगह छोड़कर अलग अलग समूहों में इकट्ठे होने लगे। कई छोटी-छोटी नई आकृतियां निर्मित हो गई।
      मूल आकृति अपने क्षतविक्षत अस्तित्व को समेटने लगी तो पाया उसका मौलिक स्वरूप ही खत्म हो गया।
       अब दूर खड़ी बिंदु मुस्कुरा रही थी उसे देखकर क्योंकि उसके एक  इशारे से पूरा माहौल बदल गया।
      कुछ देर बाद उसने महसूस किया कि उसे तो किसी समूह ने जोड़ा ही नही और एक पल में ही उसे अपनी गलती का अहसास हो गया और अचानक वह सुबककर रो पड़ी।
       उसे रोते देखकर आकृति उसके पास आई और उसे गले से लगाकर बोली, मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हारे अस्तित्व पर उपहास न किया होता तो ये नौबत नहीं आती।
        आज हम दोनों दुखी इसलिए है क्योंकि मैंने बिंदु के अस्तित्व की उपेक्षा की और तुमनें भीड़ में किसी एक पर विश्वास करके अपनी कमजोरी कह दी। तुम्हारी कमजोरी और मेरी मूर्खता का परिणाम अलगाव और बिखराव है जिसके कारण बिंदु और आकृति दोनों ही एक दूसरे के बिना अस्तित्व खो बैठे।
         दूर खड़े नए बने अनेक गुटों ने ये पुनर्मिलन देखा और बातें सुनी। कुछ समझे कुछ अहम के चलते समझ कर भी न समझे कुछ नासमझ अपने साथियों की समझ पर निर्भर रहे। इस तरह जो आकृति के पास वापस लौटे उन्होंने बिंदु के निर्देश पर स्थान ग्रहण किया। आकृति छोटी ही सही पर मूल रूप में लौटी।
         बिंदु और आकृति ने एक दूसरे के अस्तित्व का सम्मान करना सीख लिया। बिंदु के नेतृत्व में आकृति का आकार पहले से अधिक सुदृढ़ और सुंदर हो गया। दोनों की प्रतिबद्धता ने कई नए आयाम स्थापित किये।

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ,आभार। "एकलव्य"

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